मध्य प्रदेश

कफ सिरप कांड : जहर बोतल में नहीं, सिस्टम की नसों में था”

प्रशांत नायक : छिंदवाड़ा के आसमान में अब भी उन बारह मासूम सांसों की गूंज बाकी है, जो कफ सिरप की बोतल में घुलकर हमेशा के लिए खामोश हो गईं। मौत इतनी सस्ती, सिरप इतनी जहरीली और सरकार इतनी गहरी नींद में ऐसे दृश्य शायद नरक के दस्तावेज़ में भी दर्ज न हों। बारह बच्चे… जिनकी आंखों में अभी सपनों का दूध सूखा भी नहीं था, जिनकी हंसी में अभी स्कूल की किताबों की खुशबू घुलनी थी, जिनके पैरों में मिट्टी के कणों की जगह जिंदगी की दौड़ होनी थी। लेकिन नहीं उन्हें मिला डाईथाइलीन ग्लाइकोल का अमृत, जो दरअसल जहर था। वो भी किसी विदेशी तस्कर ने नहीं, बल्कि अपने ही सिस्टम ने पिलाया।

कहा गया था कि यह सिरप खांसी भगाएगा, लेकिन उसने सीधे प्राण छीन लिए। और अफसोस, जब पहला बच्चा मरा, तब सरकार ने पूछा तक नहीं कि “क्यों?” शायद किसी मीटिंग में स्वास्थ्य सचिव चाय पी रहे थे, किसी मंत्री का कार्यक्रम था, और फाइलें उसी तरह मेज पर ऊंघ रही थीं जैसे खुद व्यवस्था। तमिलनाडु ने तीन दिन में जांच कर ली, मध्यप्रदेश ने छह दिन लगा दिए क्योंकि यहां की मशीनें भी अफसरों की चाल से चलती हैं, और अफसर तो खैर, जनता की मौत से ज्यादा अपनी कुर्सी की धूल झाड़ने में व्यस्त रहते हैं। केंद्र सरकार ने खुद कहा कि “अगर जांच अगस्त में होती तो सात-आठ बच्चे बच जाते।”

कितनी सहजता से कहा गया जैसे किसी मीटिंग में परोसते वक्त कह दिया गया हो, “थोड़ा नमक कम है।” पर क्या किसी ने सोचा, उन सात-आठ बच्चों के मां-बाप अब कैसे जिएंगे? जिनके कानों में अब भी वो आखिरी आवाज गूंजती होगी “धीरज धरो बेटा, हम तुम्हें निकाल लेंगे!” काश उस वक्त कोई सरकार भी यही कह पाती… “धीरज धरो नागरिको, हम तुम्हें बचा लेंगे!” लेकिन नहीं, सरकार तो अब भी वही है रिपोर्ट आने के बाद बैन लगाने वाली, मौत के बाद मुआवजा देने वाली, और हर हादसे के बाद प्रेस नोट जारी करने वाली।

बैन लगा, एफआईआर हुई, चार लाख की राहत घोषित हुई और अगले ही दिन वही अफसर अगले कार्यक्रम में बच्चों को पौधे बांटते दिखे, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। डॉ. प्रवीण सोनी नाम के उस डॉक्टर ने सिरप लिखा, और बेचने वाला निकला उसका भतीजा। क्या शानदार पारिवारिक तालमेल! एक ने पर्ची दी, दूसरे ने बोतल दी, और तीसरे ने मौत की गिनती की। अब देखिए न, यही तो है ‘आत्मनिर्भर भारत’ डॉक्टर, मेडिकल और मौत सब एक ही घर में! और फिर आई सरकार की “जांच” यानी फाइलों का एक नया पर्व। रिपोर्टें आईं, प्रेस रिलीज़ बनी, और बयान निकले “दोषियों पर कठोर कार्रवाई होगी।” कठोर यानी क्या? कोई ट्रांसफर, कोई सस्पेंशन, या फिर वही पुरानी सरकारी निंदा? मृत बच्चों के नामों की सूची अखबार में छपी, लेकिन उन पर जिम्मेदार अफसरों के नाम कहीं नहीं मिले। शायद सरकार को भी डर हो कि कहीं सिस्टम का चेहरा दिख गया तो दर्पण टूट जाएगा। देश की औषधि गुणवत्ता पर इतना भरोसा कि पैरासिटामोल से लेकर इंजेक्शन तक ‘अमानक’ निकले। कुछ गोलियां घुलीं नहीं, कुछ में कचरा मिला।

अफसोस, यही दवाएं सरकारी अस्पतालों में गरीबों के बच्चों को दी जाती हैं। जो पैसे वाले हैं, वो तो पहले से निजी अस्पतालों में सुरक्षित हैं क्योंकि मौत हमेशा गरीब की गलियों में ही घूमती है। अब राज्य के बड़े नेता कहेंगे “हमने जांच बिठा दी है।” वाह, क्या बात है!
जिस सिस्टम ने 30 दिन में मौतें देखीं, वही अब 300 दिन जांच करेगा। जिम्मेदारी तय होने तक बच्चे भूले जाएंगे, और अफसरों के चेहरे फिर से चमक जाएंगे। बारह बच्चे चले गए, बारह परिवार उजड़ गए, लेकिन शायद सरकार को अब भी लगता है कि यह सिर्फ आंकड़ा है। आखिर लोकतंत्र में हर मौत एक फाइल बन जाती है और हर फाइल एक रिपोर्ट। फर्क बस इतना है कि इंसान मरता है, सिस्टम नहीं।
काश किसी दिन यह सिस्टम भी इंसान बन जाता तब शायद कोई बच्चा सिरप पीकर नहीं मरता। काश किसी मंत्री के घर में भी यही सिरप गलती से चला जाता — तब शायद जांच एक दिन में पूरी हो जाती। पर अफसोस, इस देश में न्याय भी अब “वोट बैंक” की तरह बंट चुका है। तो हां, अब मप्र सरकार ने कोल्ड्रिफ पर बैन लगा दिया है। पर क्या उन बारह बच्चों की मुस्कानें वापस लाने का भी कोई आदेश जारी हुआ है?

क्या किसी अधिकारी को रातों की नींद उड़ गई?
क्या किसी डॉक्टर ने अपना सिर झुका कर मांफी मांगी?
नहीं… सब कुछ सामान्य है। जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

बस फर्क इतना है कि छिंदवाड़ा की हवा अब थोड़ी भारी हो गई है उसमें बच्चों की हंसी की जगह माताओं की सिसकियां घुल गई हैं। और इस सिसकी के बीच यह देश फिर एक बार पूछ रहा है “बैन तो ठीक है सरकार,पर उन हत्यारों का क्या,जो तुम्हारी कुर्सियों की आड़ में जहर बेचते रहे दिनदहाड़े, खुलेआम,और तुम चुप रहे…?”

प्रशांत नायक : प्रशांत नायक एक पत्रकार , विचारक, लेखक है। वे मूलरूप से मध्यप्रदेश के विदिशा जिले की गंजबासौदा तहसील के रहने वाले है। उनके पिता गोविंद नायक जिले के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार है।

प्रशांत नायक, विचार लेखक
प्रशांत नायक, पत्रकार, विचारक-लेखक

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